नक्सलवाद

की हमने बहुत कोशिश करें आशिक़ी नई सी
निकाला भी दिल का टेंडर, छापे भी इश्तहार।
इक मिल भी गई पार्टी, कर लिया इख़्तियार।
कहा तेरे दिल की तह में दबे हैं कुछ एहसास
आअो इन्हे निकालें, तू मुझसे इनको बाँट
मुझे दे दे तू ये दौलत, इस ग़म से पा निजाद।
तेरे घाव सब सुखा दें, हरे हों या भरे हों
चल खोदें क़िस्से सारे, भले हों या बुरे हों।

मैं चाहता था सचमुच, उसका कहा ही करना
पर दिल में कहीं था तेरा इश्क़ अभी ज़िंदा…
पुरज़ोर फिर चढ़ा वो इस दिल पे हक़ जताने
कितने भी भर लो टेंडर, यादें कहाँ बिकती हैं।
एहसास हैं ये मेरे क्यों दे दूँ इन्हे तुमको?
मत खोदो मेरे क़िस्से, बस ख़ून ही रिसेगा
यलग़ार ये बनी है अब इब्तिदा ग़दर की
इस दिल पे अौर किसी का अब ज़ोर ना चलेगा।

उठा था जवाँ दिलों में उफनता हुअा सा
वो साल दूसरा था, वो हाल दूसरा था।
अब दब के रह गया है ख़्वाहिशों के जंगलों में
कोई रौंदता इधर से, कोई काटता उधर से।
मैं जानता हूँ है ये दुश्मन मेरी ख़ुशी का
पर फिर भी ये लगता है, ये दिल तो था इसी का…
ये जंग-ए-बग़ावत है या हक़ की है लड़ाई
है फैसला कठिन, ये तेरा इश्क़ या नक्सलवाद।

नक्सलवाद