१५ अगस्त

सारी पढ़ाई english medium में करी इसलिए अक्सर independence day कह जाते थे। आख़िर Macaulay के क़ाबिल वंशज जो ठहरे। जब हिंदी वाली मैडम ज़बरदस्ती निबंध लिखवाती थीं या किसी अौर वजह से उस एक विषय में इस विषय का विषय उठ जाता तो स्वतंत्रता दिवस लिखना पड़ता था। लिखना पड़ता था इसलिए बोला कि स्वतंत्रता जैसा मुश्किल शब्द बोलने का हमें कोई शौक नही था…तो सिर्फ लिखा हुआ पढ़ते हुए ही बोलते थे। एक-दो पीढ़ी पुराने लोग ज़्यादातर आज़ादी का दिन बोलते थे…मेरे ख़याल में इसके दो कारण हैं – पहला, कि उस वक़्त के लोग बोलते हुए उर्दू हिंदी में बहुत फर्क नही करते थे अौर दूसरा, कि उन के लिए १९४७ एक पढ़ी हुई तारीख नही एक आखों देखी हक़ीक़त थी इसलिए शायद उन्हे सच में वो आज़ादी का दिन लगता होगा।

लेकिन हमारे लिए इस नए ज़माने के त्यौहार का असली नाम कुछ अौर ही था…१५ अगस्त। 

नही मैं आपको independence day/स्वतंत्रता दिवस/आज़ादी के दिन की तारीख नही याद दिला रहा। हमारे लिए उसका नाम ही “१५ अगस्त” था। अौर एेसा बिलकुल नही है कि हमनें तभी से रंग दिखाने शुरू कर दिये थे अौर किसी political point को साबित करने या एक protest के तौर पे हमने एेसा करना शुरू किया। बस जब भी हिंदी में किसी को इस बारे में बोलते हुए सुना तो ज़्यादातर लोगों के मुँह से १५ अगस्त ही सुना। “१५ अगस्त की छुट्टी”, “१५ अगस्त की तय्यारियाँ”, “१५ अगस्त का फंक्शन” वगैरह।

बचपन भर हम उसे १५ अगस्त बुलाते रहे, स्कूल जाके किसी को झंडा फहराते हुए देख के जन गन मन गाते रहे अौर वही सस्ते वाले मोतीचूर के दो लड्डू खा के खुशी खुशी घर वापस आते रहे। 

( आप में से कुछ लोग अब ज़रा छटपटा से रहे होंगे, क्योंकि मैंने ‘जन गन मन’ लिखा ‘जन गण मन’ नही। इसलिए आपके मन की शांति के लिए थोड़ा tangent पे चलते हैं…आप शायद बचपन से ही बिलकुल शुद्ध उच्चारण करने लगे होंगे पर ज़्यादातर बच्चे ‘गण’ को ‘गन’ ही कहते हैं। बल्कि शायद काफी सारे भारतीय एेसे भी होंगे जो ज़िंदगी भर यही मानते होंगे कि उनका राष्ट्रीय गान ‘जन गन मन’ ही है। अब वापस point पे आते हैं। )

स्कूल की छुट्टी होती थी तो ज़ाहिर सी बात है कि काफी ख़ुशी का दिन होता था, पर कभी कुछ खास सोचा नही कि छुट्टी क्यों मिलती है। मतलब पढ़ाया सिखाया तो काफी गया कि उस दिन हमारे देश को अंग्रेज़ों से आज़ादी मिली थी, पर इस बात का मतलब क्या था ये समझने लायक शायद हमारी समझ थी ही नही। अगर कुछ था तो बस एक सीखी सिखाई अँधी अविकसित सी राष्ट्रवाद की भावना थी शायद। लेकिन शायद १५ अगस्त का असली महत्त्व हमारे लिए यही था कि स्कूल की छुट्टी होती थी।

ख़ैर छोड़िए, बचपन में ज़्यादा घुसे तो घुसते ही चले जाएँगे…क्योकि बचपन की यादें एक लाईन में खड़ी साईकलों जैसी होती हैं, एक गिरती है तो उसके पीछे पीछे सारी गिरती चली जाती हैं। तो बचपन की बातों से आगे बढ़ते हैं अौर वो बात करते हैं जिसके लिए हम ये सारी बातें कर रहे हैं। १५ अगस्त का नाम।

१५ अगस्त को छोड़के जिन तीन नामों का हमने ज़िक्र किया उन तीनों के मायने थोड़े अलग अलग हैं…पर्याय वो सिर्फ इसलिए बने हैं क्योंकि हम उन तीनों का इस्तेमाल एक ही दिन के लिए करते हैं।

अंग्रेज़ी में independence असल में dependence का विलोम है। अौर dependence का सबसे नज़दीकी हिंदी अनुवाद निर्भरता होगा। तो independence का मतलब होगा किसी पे निर्भर ना होना या स्वावलम्बी होना। एक बहुत संकीर्ण से राजनैतिक अर्थ में शायद भारत १९४७ में independent हो गया था, पर अगर इस से थोड़ा ऊपर उठ कर देखें तो शायद दुनिया का कोई भी देश सच में independent नही है। हर देश किसी ना किसी चीज़ के लिए दूसरे देशों पर निर्भर होता है…ख़ासकर के आजकल की ग्लोबलाईज़्ड दुनिया में।

अब हिंदी वाले शब्द की बात करते हैं। ‘स्वतंत्रता’ का इस्तेमाल अक्सर ‘स्वाधीनता’ या ‘आज़ादी’ के अर्थ में होता है लेकिन अगर उसके मूल में घुस के देखें तो स्वतंत्रता का मतलब होगा अपना खुद का तंत्र, अपना खुद का system, framework या mechanism होना। हमारा तंत्र सचमुच हमारा है या नही ये भी चर्चा का विषय हो सकता है,  भारतीय दण्ड संहिता अौर आपराधिक प्रक्रिया संहिता तो हमें सीधे सीधे अंग्रेज़ों से विरासत में ही मिली है अौर हमारी संसदीय प्रणाली भी काफी हद तक ब्रिटिश सिस्टम पर ही आधारित है। लेकिन अगर हमारा तंत्र पूरी तरह से हमारे देश की उपज हो तो भी ये हमारे हित में होगा इसकी कोई गारंटी तो नही है…तो इस बात में खुशियाँ मनाने की क्या बात है? अौर वैसे भी अपना खुद का तंत्र बनाने की खुशियाँ तो हम फौज की परेड देख कर २६ जनवरी को मनाते हैं ना? तो क्या हमें गणतंत्र दिवस को ही स्वतंत्रता दिवस भी कहना चाहिए? मेरे खयाल में १५ अगस्त के लिए ‘स्वाधीनता दिवस’ ‘स्वतंत्रता दिवस’ से बहतर नाम होगा। 

रह गया ‘आज़ादी का दिन’। ये नाम तो सुनकर ही हँसी सी छूट जाती है। इस बात पर मुझे कोई शक नही कि ये लफ्ज़ ‘आज़ादी’ अौर इसके पीछे जो भाव है वो ‘independence’ अौर ‘स्वतंत्रता’ की मामूली सी सांसारिक सी व्यवहारिकता से बहुत ज़्यादा ख़ूबसूरत अौर उन्नत है। लेकिन फिर भी (या शायद इसीलिए) १५ अगस्त १९४७ को जो कुछ भी हुआ उस के लिए इस लफ्ज़ का इस्तेमाल कुछ ग़लत सा लगता है। हाँ हमारे देश में अंग्रेज़ों का राज ख़तम हो गया अौर अपने ही देशवासियों का शासन शुरू। लेकिन क्या हम सचमुच आज़ाद हैं? मुझे तो एेसा बिलकुल नही लगता। आपको लगता हो तो आज़ादी अौर आज़ादी का दिन मुबारक।

मेरे लिए तो १५ अगस्त ही है।

१५ अगस्त